रविवार, 27 जून 2010

गीतों की पंक्तियों की जोड़ तोड़

१-
देखने वालों ने क्या क्या नहीं देखा होगा
चलो उसे हम देख डालते हैं और उसके आदि द्रष्टा बन जाते हैं

२-
हर तरफ़ हर जगह हर कहीं पे है, हाँऽ उसी का नूर
...
...
कोई तो है जिसके आगे है आदमी मज़बूर
उसमें क्या पूछना, साफ साफ औरत है

३-
चमकते चाँद को टू....
ओय गंजे चमकते चाँद नहीं चमकती चाँद बोल

४-
देखा तुमको जबसे बस देखा तुमको यारा
समझने की कोशिश कर रहा हूँ कि तुम्हें ऐसे देखना ठीक है कि नहीं

५-
जाने क्यों लोग प्यार करते हैं
ये भी कोई करने की चीज़ है?
यह तो अपने आप होता है
और यह कोई काम नहीं जो किया जाए, यह भावना है

६-
क्यों आज कल नींद कम ख्वाब ज्यादा है
हल्की नींद में सपने ज्यादा आते हैं
मेहनत नहीं करोगे, इधर उधर दिमाग भटकाओगे तो गहरी नींद कैसे आएगी

७-
तुमको देखा तो ये ख़याल आया
ज़िन्दगी धूप तुम घना साया ।
तुम तो मेरे साथ रहे अरसे से
मैं क्यों तपता रहा छाया में नहीं आया ।
हमने देखी है इन आँखों में महकती खुशबू
इनमें अफ़सोस मेरा चेहरा नज़र नहीं आया ।
इसको क्या कहें मिलना कि या नहीं मिलना
है मेरे पास ही पर अब तक उसे नहीं पाया ।
मैंने दिल खोल रखा है इससे हुआ ऐसा
दिल में तो आया पर उसे न मं पकड़ पाया ।

मंगलवार, 22 जून 2010

शेर

लल्लू ने एक ट्रक खरीदा, उस पर लिखवा दिया - लल्लू का शेर ।
जहाँ से वह ट्रक निकलता, दूसरी गाड़ियों के पहिए पंचर हो जाते (शेर के आगे सभी झुक जाते)
एक दिन एक जीप ने तेजी से उस ट्रक को ओवरटेक किया, ट्रक पंचर हो गया ।
पप्पू ने उस जीप पर लिखवा रखा था - पप्पू की शेरनी

ग़ज़ल सिर्फ़ दो शे’र की

देखने की जो की कोशिश तो नज़र आया है
कुछ न किया बस चाहा था उसे पाया है ।
धुँधली है नज़र थोड़ी अभी साफ़ नहीं
अपना हो गया है या अभी पराया है ।

वाह वाह वाह ...

रविवार, 13 जून 2010

हवाओं में उड़ता हूँ

तुम्हें पता तो होगा
तुम्हीं पे मैं फ़िदा हूँ
तुम्हें है जब से चाहा
हवाओं में उड़ता हूँ
हवाओं में उड़ता हूँ

मैं - आखिरी लाइन दो बार क्यों? यह गाना सुनते हुए मैंने यह लाइन दुहरा दी थी - जैसे आम तौर पर लोग गाना सुनते हुए करते हैं ।
आप - तो इसमें खास बात क्या है जो इसे इस तरह बता रहे हो? हो बिलकुल चाट ही ।
मैं - चाट को इस तरह से हीन नज़र से मत देखो । चाटत्व एक प्रतिभा है । चाट के कहने का तरीका बेवकूफ़ाना होता है पर वह अक्सर बेकार की बातें नहीं करता । कोई बात जो गम्भीर होकर नहीं कह सकता, चाट बनकर आसानी से कह सकता है । इससे गम्भीर दशा के साइड-इफ़ेक्ट से बच जाता है । चाट की बात को समझने के लिए भी प्रतिभा चाहिए होती है जैसे कवि की कविता समझने के लिए सहृदयता ।
आप - कहाँ गाना चल रहा था, फिर चाट महिमा, फिर काव्यशास्त्र । सही कहा था मैंने - हो बिलकुल चाट ही ।
मैं - हाँ मैं मानता हूँ कि मैं चाट भी होता हूँ । जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के हर बच्चे को होली की पूर्व सन्ध्या पर यह शपथ दिलाई जाती है कि बिना किसी प्रकार के भेदभाव के सभी को चाटेंगे । वही तो निभा रहा हूँ । भले ही मैंने शपथ नहीं ली है, पर जो भी कान सुनते हैं, उसे मन दुहराता तो है ही, इससे आभासीय शपथ हो भी जाती है, जिसमें असली शपथ की तरह बन्धन नहीं होता, क्योंकि हम हरिश्चन्द्र जी से बहुत कम हैं, पर उसे निभाएँ तो अच्छा है ।
आप - अब नीतिशास्त्र पर और हरिश्चन्द्र जी पर चले गए ! सही कहा था मैंने - हो बिलकुल चाट ही । अच्छा अब चुप हो जाओ ।
मैं - क्यों चुप हो जाऊँ । चाट किसी के इशारे पर नहीं चलता । परम स्वतन्त्र न सिर पर कोई । चाटत्व एक व्यूह होता है जो अनधिकारी को अर्थ तक पहुँचने नहीं देता । जो इस व्यूह को भेदते हुए धराशायी न हो जाए, वही अर्थ तक पहुँच सकता है । तुम्हें सुनना हो तो सुनो, नहीं तो चुपचाप सुना करो । कालो ह्यनन्तः विपुला च पृथ्वी - कोई तो होगा जिसे समझ में आए । मैंने जो बात शुरू की थी उसे पूरी ही नहीं होने दिया, वह केवल इतनी ही बात नहीं थी । उससे जुड़ी और भी बात थी । बात पूरी होने से पहले ही टोंक दिया, तो बात इधर-उधर भटक गई । नहीं तो अब तक हो जाती । थोड़ा सुनने का धीरज नहीं ।
आप - आपकी बात सुनने में बहुत परेशानी होती है, क्योंकि आप बहुत देर तक बोलते रहते हैं और बता नहीं पाते हैं । बड़ी देर तक बताते रहते हैं और उसमें से बात बहुत थोड़ी सी निकलकर आती है जो थोड़ी देर में कही जा सकती है ।
मैं - उस थोड़ी सी बात का मतलब समझो तो बहुत बड़ी बात है, न समझना चाहो तो कोई खास नहीं है । वही बात है कि समझने के लिए अधिकारित्व होना चाहिए ।
आप - ठीक है, जो बात कह रहे थे वह जल्दी पूरी करिये । मुझे जाना भी है ।
मैं - हाँ, तो बात यह थी कि जब मैंने यह लाइन गाने के साथ दोहराई - हवाओं में उड़ता हूँ - उस समय मैं सचमुच हवाओं में उड़ रहा था । मैं जनवरी में रजिस्ट्रेशन और सेमिनार के लिए बंगलौर से दिल्ली आ रहा था - हवाई जहाज से । है न खास संयोग !
आप - बस हो गई बात पूरी? बस इतनी सी बात थी? अब मैं चलूँ?
मैं - नहीं इसके साथ एक और संयोग था
आप - हे भगवान ! कब यह बात पूरी होगी !
मैं - वह दूसरा संयोग था कि मैंने सोचा कि ....
आप - आपकी यही प्रॉब्लम है कि आप सोचते बहुत हैं ।
मैं - हाँ मैं सोचता बहुत हूँ । चिन्तनशील मेरा स्वभाव है, और यही स्वभाव मेरे व्यक्तित्व को सूट करता है । जब भी मैंने अपने स्वभाव से हटकर व्यवहार करना शुरू किया, मेरे आसपास के लोगों को परेशानी होने लगी । इसलिए मैं तो अपने स्वभाव के अनुसार ही करूँगा और बोलूँगा । फिर बात को भटका दिया । हाँ तो मैंने देखना चाहा कि मैंने कब से हवाओं में उड़ना शुरू किया है, तो पता चला कि तभी से, जब पुणे की ट्रेन छूटी थी, नवम्बर २७, २००८
आप - अब मैं चलूँ?
मैं - हाँ मेरी यह बात पूरी हो गई ।
आप - अच्छा नमस्ते
मैं - नमस्ते

करने दो

कहने वाले कहा करेंगे, कहते हैं तो कहने दो
सुनने वाले सुना करेंगे, सुनते हैं तो सुनने दो
लिखने वाले लिखा करेंगे, लिखते हैं तो लिखने दो
पढ़ने वाले पढ़ा करेंगे, पढ़ते हैं तो पढ़ने दो
नदिया को इतना मत बाँधो, कुछ तो खुलकर बहने दो
ठहरो सपने देख रहा हूँ, अभी ख्वाब में उड़ने दो

कीटनाशक

तुम्हारे लार क्यों बह रही है?
मेरे पेट में कीड़े हैं
कोकाकोला पी लो, कीड़े मर जाएँगे