शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

लव कम अरेंज ज्यादा

विवाह कितने प्रकार के होते हैं, पहले से पढ़ते आए हैं कि आठ प्रकार के ।
ब्राह्मो दैवस्तथा चार्षः प्राजापत्यः तथाऽऽसुरः ।
गान्धर्वो राक्षसश्चैव पैशाचश्चाष्टमोऽधमः ॥
सन्दर्भ मत पूछना । क्योंकि मेरा बताने का मन नहीं है । क्योंकि जो मानने वाले हैं, उन्हें विश्वास करने में कोई कठिनाई नहीं होगी कि परम्परा में प्रसिद्ध आठ विवाह प्रकार यही हैं । मतभेद केवल क्रम में तथा उनके विधि-विधान में है । इनमें से कोई तो चलन में हैं और कोई चलन में नहीं हैं । कोई विकृत रूप में चलन में हैं पर विवाह के रूप में पहचाने नहीं जाते और चाहिए भी नहीं । कोई अगर दण्डनीय अपराध करे तो उसको समर्पित होकर उसे पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए बल्कि ऐसी सज़ा देनी चाहिए कि फिर वह किसी के साथ वैसा अपराध करने से डरे । पर विवाहों के यही प्रकार चलन में नहीं हैं, इनसे अलग भी प्रकार चलन में हैं । विशुद्ध रूप में इन प्रकार के विवाह तो नहीं ही चलन में हैं, बल्कि एक से अधिक प्रकार का मिश्रण उसके विधि-विधान में होता है । अन्दरूनी भावना या प्रक्रिया जिसके अधिक निकट होती है उसे उस विवाह के रूप में पहचाना जा सकता है । हिन्दुओं का प्रचलित पारम्परिक विवाह प्राजापत्य विवाह के सबसे निकट है इसलिए इसे प्राजापत्य विवाह कहा जा सकता है ।
विवाहों की यही संख्या पूर्ण नहीं है । ये तो केवल हिन्दू धर्म के अनुसार विवाह हैं । दूसरे धर्म की विवाह रीतियाँ होती हैं । कुछ तो धर्म से चिढ़कर धार्मिक तरीकों को पद्धति से निकालकर शेष से नई पद्धति बनाकर विवाह करते हैं । हिन्दुओं के भी सभी विवाह इन आठ प्रकारों में अधिकतर परिभाषित किए जा सकते हैं । जैसे जनजातियों की विवाह पद्धति अक्सर आसपास के समाज से मिलती हुई होती है पर कई बार उनसे अलग भी होती है । कई प्रकार इन आठ प्रकारों में वर्गीकृत किए जा सकते हैं और कुछ नहीं भी किए जा सकते । कभी जब दो धर्मों के लोग विवाह करते हैं तो या तो उनमें से एक धर्म के तरीके से विवाह होता है या दोनों को मिलाकर संकर तरीके से । चाटत्व एक गुण है जिससे कथनीय बात खुली रखते हुए भी अधिकारी के लिए सुरक्षित की जा सकती है । ऐसा कवच है जिसे भेदकर ही कोई कथ्य तक पहुँच सकता है अगर धीरज रखे और ऊब न जाए । इसीलिए किन बातों से मैं क्या कहने वाला हूँ सभी नहीं जान सकते ।
इन विवाहों के अलावा भी कुछ प्रकार होते हैं । एक स्वर्गारोहण विवाह होता है । आपने चुटकुला सुना होगा - मेरी बेटी जिस घर में जाएगी उस घर को स्वर्ग बना देगी ...... और उस घर के वासियों को स्वर्गवासी । वह वाला स्वर्गारोहण विवाह नहीं है । यहाँ पर किसी दूसरे स्वर्गारोहण विवाह की ओर संकेत है जो कर लेने से करने वाले समझते हैं कि उनके लिए स्वर्ग का रास्ता खुल जाएगा । पर जो बात कहनी थी वह दूसरी थी इसलिए फिर से पैराग्राफ़ बदल रहा हूँ ।
अभी तक उन प्रकारों का नाम तो लिया ही नहीं जो आज कल इन सब से अलग प्रचलित हैं । परिवार द्वारा आयोजित को अरेंज मैरिज, इसके अलावा प्रचलित नाम हैं कोर्ट मैरिज लव मैरिज । एक इनका संकर प्रकार भी प्रचलित हो गया है - मध्यम मार्ग की तरह - मिश्रित अर्थव्यवस्था की तरह - लव कम अरेंज मैरिज । इस प्रकार के विवाह को कई लोग अच्छा मानते हैं ।
लव मैरिज मे यह अच्छाई देखी जाती थी कि किसी अपरिचित से विवाह नहीं हो रहा । दोनों लोग एक दूसरे को जानते समझते हैं और प्यार करते हैं । पर इनमें अपरिपक्वता और परिवार का समर्थन न होने से विवाह के बाद अक्सर रिश्ते भारी पड़ने लगते हैं । इस आधार पर कई रिश्ते स्थायित्व की दृष्टि से विश्वसनीय नहीं होते थे । अरेंज मैरिज में यह अच्छाई देखी जाती थी कि बड़े बूढ़े लोग देखकर करते हैं । कई बातें जो युवा समझ नहीं पाते । और प्यार होने की वजह से देखना नहीं चाहते । और इनमें गड़बड़ यह होती थी कि कुल जाति और दहेज व्यक्ति से अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाते थे और उपलब्ध अच्छे रिश्ते भी इस कारण नहीं हो पाते थे और बेमेल भी विवाह हो जाते थे, और हैं भी । लव मैरिज इस गड़बड़ का उपचार है । दोनों की अच्छाइयों और खामियों को देखते हुए व्यक्तियों और परिवारों ने सन्तुलन और समन्वय का रास्ता खोजा - लव मैरिज और अरेंज मैरिज का संकर - लव कम अरेंज मैरिज । व्यक्तियों ने सोचा कि अपने मन की शादी करें पर परिवार को राजी करके जिससे परिवार भी न छूटे । बड़े बूढ़ों ने सोचा कि लव मैरिज से केवल नाम से घृणा क्यों की जाए, अगर इससे अच्छा रिश्ता होता है और हमारे मानकों पर भी सही है, तो क्यों न इनकी पसन्द की ही शादी कर दी जाए । यह रास्ता पहले के समाज में लव मैरिज जैसा निन्दित भी नहीं है और लालच आधारित या रूढ़िवादी भी नहीं । इसका सबसे बड़ा लाभ जो मुझे समझ में आता है वह है दहेज की समस्या का निवारण । जो दहेज नव वर-वधू को नई गृहस्थी बसाने में मदद के लिए दिया जाता था, धीरे धीरे वह विवाह की पूर्व शर्त बन गया । ऐसी शर्त जिसको पूरा होने के लिए समय तो दिया जाता है पर पूरी न होने पर कई अनर्थों का कारण बन जाता है । कुल और जाति की ऊँच नीच का भी इससे समाधान होता है, पर इससे अधिक महत्त्वपूर्ण दहेज की समस्या का समाधान है । यह तो ऐसा सर्वस्वीकृत नियम सा बन गया है कि यदि कोई कहे कि मुझे दहेज नहीं चाहिए, तो देर तक कोई विश्वास नहीं करेगा । अगर देख भी ले कि कुछ नहीं लिया है तो भी सोचेंगे कि सारा कैश ही ले लिया होगा । औरों की तो छोड़िये, दहेज देने वाले भी जल्दी नहीं विश्वास करेंगे कि हाँ इसे सचमुच दहेज नहीं चाहिए । लव कम अरेंज मैरिज में परिवार यह भी चाहते हैं कि शादी उनके मानकों पर खरी उतरे । इसलिए समान जाति में कुल की ऊँच नीच तो चल जाती है पर जाति के बाहर मुश्किल हो जाती है । इसके लिए परिवार को राजी करना बड़ा कठिन काम है । वैसे ही परिवार के लिए इसे स्वीकार करना । लव कम अरेंज मैरिज एक तरह से दो प्रकारों का समन्वय या सन्तुलन है, और उसके भी अन्दर सन्तुलन है जाति की सीमाओं को स्वीकार और जाति के अन्दर की ऊँच नीच की सीमाओं को तोड़कर लव कम अरेंज मैरिज । इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देना चाहिए जिससे कुछ सामाजिक बुराइयों का इलाज होगा । और इस प्रकार के विवाह में दोनों पक्षों के माता-पिता यदि कोई सहयोग करें तो उसे दहेज की तरह दृष्टि से नहीं देखा जाएगा । लेकिन इसका अर्थ कोई यह कतई मत समझे कि जिन्हें जाति के बाहर प्यार हो गया है वे उसे छोड़कर जाति के अन्दर किसी और को ढूँढ़ें । मैं उन्हें हतोत्साहित नहीं कर रहा । यदि रिश्ता अच्छा है तो आपको इस पर भरोसा रहे । इसमें तो बस यही मेरी सलाह है जैसे उस लव कम अरेंज मैरिज में समन्वय किया जाता है, वैसे इसमें भी प्रेम और परिवार का समन्वय करने की कोशिश करें । यानि विवाह अपने मन का करें यथासम्भव परिवार के आशीर्वाद के साथ । यदि दोनों एक साथ सम्भव न हो पाएँ तो यहाँ मेरी कोई सलाह नहीं है । क्योंकि ऐसे में दूसरे की सलाह नहीं आपका विवेक निर्णायक होना चाहिए । वही आपका आजीवन साथी है, दूसरा कोई नहीं । परिवार और प्रिय अगर साथ नहीं आ सकते तो इनमें से कोई भी छूट सकता है, पर जो तब भी आपके साथ रहेगा - आपका विवेक, आपका धर्म । उससे पूछिए । उसके अनुसार चलिए ।

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

गज़ल दो से अधिक शे’र की

कभी कभी पसन्द की चीज़ उबाने लग जाती है
जैसे वह प्यारी तान, जब जबरदस्ती सुनाती है ।

कितना माँगते थे हम कि धूप दो गर्मी बढ़ा दो
आज उस समय की चुभती ठंड हमें भाती है ।।

चाट लगती हैं कभी उन्हें मेरे दिल की आवाज़ें
जिन्हें कभी मेरी छोटी सी डाँट भी सुहाती है ।॥

क्यों ऊब जाते हैं कुछ लोग अपनी बूढी माँ से
जिसकी लोरी के बिना उन्हें नींद नहीं आती है ।॥।

जिसे हम सोचना भी ठीक नहीं समझते
जाने क्यों ऐसी बात भी दिल में कभी आती है ।॥॥

इतना आगे उधर क्यों बढ़ जाते हैं लोग
दिल की आवाज़ ही जिन्हें उधर से लौटाती है ।॥॥।

जाते समय गुस्सा इतना कि रोका ही नहीं
तो अब क्यों दिल की आवाज़ उसे ही बुलाती है ।॥॥॥

क्यों माँगती है ’इस लुटेरे को जल्दी से उठा ले’
वोटर जनता जिस नेता को बहुमत से जिताती है ।॥॥॥।

क्यों लोग देते हैं गालियाँ बड़े शौक से
परावर्तित होने पर जो बड़ी ज़ोर चिलचिलाती है ।॥॥॥॥

बड़े प्रेम से पालती है सृष्टि को ये धरती
उकता जाती है तो इसे प्रलय में डुबाती है ।॥॥॥॥।