रविवार, 19 दिसंबर 2010

घटना जो चुटकुला बन गई

आलोक उलफ़त जी हम लोगों को सुना रहे थे -
दुनिया में आए हो तो कुछ ऐसा काम करो कदरदान
कि जिस गली से गुज़रो आवाज़ आए अब्बा जान ! अब्बा जान !

यहाँ घटना शेयर कर रहा हूँ, जो चुटकुला बन गया

तभी कुछ और लड़के उसी लॉन के पास आए
आलोक उलफ़त जी ने उनसे मुखातिब होकर ज़ोर से फ़िर कहा -
दुनिया में आए हो तो कुछ ऐसा काम करो कदरदान

वे लड़के प्रसंग नहीं जानते थे, और बोल पड़े -
वही तो करके आ रहे हैं....

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

रात कली एक ख्वाब में आई

रात कली एक ख्वाब में आई
और पूछने लगी

बताओ ऐसी कौन सी कली है जो खिलती नहीं
मैं बताने चला तो उसने रोककर कहा-
छिपकली को छोड़कर

मैंने गिनाना शुरू कर दिया--

बेसिकली
आटोमैटिकली
मैथमैटिकली
वर्टिकली
पीरियॉडिकली
फिज़िकली
केमिकली
इकोनॉम्निकली
लॉजिकली
अकेडमिकली

उसने रोककर फिर से ताली बजाते हुए कहा-- हार गए ! हार गए ! मैंने कौन सी कली - एकवचन में पूछा था - तुमने दस बता दिये ।

सचमुच ऐसी कलियों से बातों में जीतना मुशकिल है

एक और गज़ल - तुम जा नहीं सकती

है इतनी ठंड कि माचिस इसे सुलगा नहीं सकती
जगाने की तो छोड़ो ठीक से ये हिला नहीं सकती ॥

तुम्हारी ज्यादती से है बड़ा धीरज मेरा ऐसे
कि कुछ भी करके मेरी नफ़रतें तुम पा नहीं सकती ।

है इतनी सूक्ष्म अपनी भावना कि जल नहीं सकती
जल भी भिगो नहीं सकता पवन भी सुखा नहीं सकती ॥

की तुमने खूब कोशिश कि सदा लड़ता रहूँ तुमसे
मैं लड़ना जो न चाहूँ तो तुम मुझको लड़ा नहीं सकती ।

तुम्हारी भावना का ख्याल करके छूट दी तुमको
जो ढंग से चाह लूँ तो और कहीं तुम जा नहीं सकती ॥