है इतनी ठंड कि माचिस इसे सुलगा नहीं सकती
जगाने की तो छोड़ो ठीक से ये हिला नहीं सकती ॥
तुम्हारी ज्यादती से है बड़ा धीरज मेरा ऐसे
कि कुछ भी करके मेरी नफ़रतें तुम पा नहीं सकती ।
है इतनी सूक्ष्म अपनी भावना कि जल नहीं सकती
जल भी भिगो नहीं सकता पवन भी सुखा नहीं सकती ॥
की तुमने खूब कोशिश कि सदा लड़ता रहूँ तुमसे
मैं लड़ना जो न चाहूँ तो तुम मुझको लड़ा नहीं सकती ।
तुम्हारी भावना का ख्याल करके छूट दी तुमको
जो ढंग से चाह लूँ तो और कहीं तुम जा नहीं सकती ॥
blog ka hal chal lene aaj yahan aaye... dekha to yah ab bhi mera hi intezar kar raha tha.. usi tarah, jaise ab se pahle ise ham chhhod kar gaye the..
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