शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

गज़ल दो से अधिक शे’र की

कभी कभी पसन्द की चीज़ उबाने लग जाती है
जैसे वह प्यारी तान, जब जबरदस्ती सुनाती है ।

कितना माँगते थे हम कि धूप दो गर्मी बढ़ा दो
आज उस समय की चुभती ठंड हमें भाती है ।।

चाट लगती हैं कभी उन्हें मेरे दिल की आवाज़ें
जिन्हें कभी मेरी छोटी सी डाँट भी सुहाती है ।॥

क्यों ऊब जाते हैं कुछ लोग अपनी बूढी माँ से
जिसकी लोरी के बिना उन्हें नींद नहीं आती है ।॥।

जिसे हम सोचना भी ठीक नहीं समझते
जाने क्यों ऐसी बात भी दिल में कभी आती है ।॥॥

इतना आगे उधर क्यों बढ़ जाते हैं लोग
दिल की आवाज़ ही जिन्हें उधर से लौटाती है ।॥॥।

जाते समय गुस्सा इतना कि रोका ही नहीं
तो अब क्यों दिल की आवाज़ उसे ही बुलाती है ।॥॥॥

क्यों माँगती है ’इस लुटेरे को जल्दी से उठा ले’
वोटर जनता जिस नेता को बहुमत से जिताती है ।॥॥॥।

क्यों लोग देते हैं गालियाँ बड़े शौक से
परावर्तित होने पर जो बड़ी ज़ोर चिलचिलाती है ।॥॥॥॥

बड़े प्रेम से पालती है सृष्टि को ये धरती
उकता जाती है तो इसे प्रलय में डुबाती है ।॥॥॥॥।

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