कुछ बातें होती हैं जिन्हें कहने का मन होता है पर सामान्यतः किसी के काम की नहीं होतीं । आज के उपयोगितावादी युग में ऐसी अनुपयोगी बातों को कौन सुने । अगर कहने लगूँ तो वे लोग भी ऊब जाते हैं जिनसे बहुत सारी लाभकारी बातें की हों । सदा मैं ऐसा नहीं रह सकता कि केवल मतलब की बात करूँ । मैं किसी से ऐसी आशा कैसे रख सकता हूँ कि कोई केवल मेरी बकवास सुनने के लिए अपना समय खर्च करे । इसके लिए यह ब्लॉग बनाया है, जहाँ सामने बैठे सुनने वाले की ज़रूरत नहीं । फिर भी मनुष्य की अपनी महत्त्वपूर्ण जगह है ।
मंगलवार, 2 अगस्त 2011
हम भला क्यों कहें
जो तुम समझ न पाओ, कहने से क्या मिलेगा पर तुम जो समझ जाओ, कहने की क्या जरूरत
इसलिए ही अभी तक, कुछ भी कहा न तुमसे जब ख़ुद ही से तुम समझो, आएगा कब मुहूरत
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